सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

Kalyuga's effect on the brain

नमस्कार
🙏मित्रों आज का शीर्षक ही बड़ा महत्वपूर्ण है यानी की कलयुग का मस्तिष्क पर प्रभाव  यह विषय जितना सोचा जाए उससे कई ज्यादा है क्योंकि इस योग में कलयुग के भी 4 स्थान है।
  • पहला : सोने मेंं
  • दूसरा  : मदिरा में
  • तीसरा : झूठ में
  • चौथा  : परस्त्रीगमन में
इन चारों चीजों का प्रभाव आज हमारे सामने पूर्ण रूप से मस्तिष्क पर दिखाई पड़ता दिख रहा है। यदि गौर से देखा जाए तो इन चारों चीजों में अधर्म ही समाया हुआ है और हर अधर्म के मार्ग पर कलयुग विराजमान है। परंतु यहां पर एक बात बतानी महत्वपूर्ण है जो कलयुग का तीसरा स्थान है जिसमें कि “झूठ” प्रदर्शित हैं। अब झूठ के भी दो पहलू है:
  • पहला : वह व्यक्ति जोकि धर्म केे मार्ग पर है और किसी मजबूरी के कारण झूठ बोलता है एवं उसको अपने झूठ का का बौद्ध भी हैं। तो वह झूूूूूठा नहीं कहलाता।
  • दूसरा : वह व्यक्ति जोकि अधर्म के मार्ग पर अग्रसर होकर किसी के नुकसान हेतु या अपने निहित स्वार्थ हेतु झूठ बोले फिर तो वह स्वयं यमराज से भी नहीं बच सकता। तथा इसी स्थान पर कलयुग की प्रभुता है।
निष्कर्ष:  इसका हल ही यही है अपने मन को इन चार स्थानों से बचाएं और मन को स्थिर करे क्योंकि जिसका मन स्थिर वह तो अपने मस्तिष्क को पूर्ण रफ्तार से चला सकता हैं। अथवा जिसने अपने मन को जीत लिया समझो आधा जग ही उसने जीत लिया।
🙏सादर प्रणाम🙏

टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

how we see the god?

 नमस्कार 🙏 मित्रो आज का शीर्षक ही इस मस्तिष्क के रहस्ययो   की चाभी है क्योंकि जिसने भगवान का दर्शन किया उसने तो पूरा ब्रह्मांड ही देेख लिया। परंतुुुुुु यह इतना सरल भी नहीं है क्योकि भगवान दर्शन के लिए मन  वश में भी होना चाहिए और यह तभी संभव है जब मनुष्य सांसारिक माया से ऊपर उठकर भगवान को याद करे।   इसके लिए भी पूर्व में कबीर जी कहते है:   “यदि नदी किनारे बैठे हैं और आप चाहते हैं कि मोती प्राप्त हो जाए तो यह कहने से प्राप्त नहीं होगा मोती को प्राप्त करने के लिए डुबकी तो लगानी ही पड़ेगी।” अर्थ  : इसी प्रकार मनुष्य भी इस कलयुग में किनारे पर ही बैठा है वह सोचता तो है मोती को पाना है यानी कि भगवान को पाना है परंतु मोहमाया में लिप्त होकर वह इस नदी में यानी की ज्ञान के सागर में डुबकी नहीं लगा पाता। और जिसने मन को वश में रख डुबकी लगाई उसे ही भगवान का दर्शन हुआ है। 🙏सादर प्रणाम🙏

Imagination of kalyug in Mahabharata

नमस्कार  🙏 मित्रों आज का शीर्षक ही यही है कि आज सबका मन जैसा है उसकी परिकल्पना महाभारत में ही हो चुकी थी। महाभारत काल में जब विधुर जी बाहर से घूमकर आते है तो वह एक दृष्टांत  धृतराष्ट्र समेत सभी को सुनाते है। यह कुछ इस प्रकार से था कि   “ विधुर जी देखते है की एक हाथी का महावत अपने हाथी को मदिरा पीला देता है पहले तो उसका महावत ऊपर बैठा था जब हाथी ने शराब पी तो हाथी बेकाबू हो गया और यह भूल गया कि महावत उसका स्वामी है अब हाथी महावत को मारने के लिए दौड़ता है वह कहता है कि इस महावत ने मुझे इस डंडे से मारा मैं इसको समाप्त करूंगा और महावत भागते भागते एक कुएं के पास आ पहुंचा एवं उसने कुएं में छलांग लगा दी अब नीचे गिरते हुए एक जड़ को पकड़ लेता है परंतु अब नीचे एक भूखा मगरमच्छ बैठा है अब महावत क्या करता  ऊपर जाएं तो हाथी उसकी जान ले लेगा एवं नीचे गिरे तो मगरमच्छ खा जाएगा फिर भी वह सोचता है कि में बच गया सहसा उसकी नजर जड़ कि तरफ जाती है उसने देखा कि जड़ को दो चूहे काट रहे थे एक सफ़ेद और एक काला चुहा तथा ऊपर एक बड़ा वृक्ष था लगा हुआ जिसमें की एक मधुमक्खी का छत्ता लगा...

Childhood brain

नमस्कार 🙏 मित्रो आज का शीर्षक यह है कि बचपन में मस्तिष्क किस प्रकार का होता है ? यह सवाल ही बड़ा रोचक है कि बचपन में बच्चे के मस्तिष्क कि परिकल्पना करना एक परमरहस्या की तरफ बढ़ने वाली बात है क्योंकि मानव जीवन के चार पहर है यह कुछ इस प्रकार है कि: पहला : बचपन  दूसरा : युवावस्था  तीसरा : जवानी  चोथा : वृद्ध  परंतु यहां पर बचपन कि चर्चा है बचपन में एक बच्चा का मस्तिष्क पूर्ण रूप से खाली होता है वह कुछ नहीं जानता। यहां पर एक ही परम रहस्य है जोकि पूर्व में एक विश्व प्रसिद्ध व्यक्ति ने कहा था की “बचपन में एक बच्चे का मस्तिष्क इतना प्रभावी होता है कि आप चाहे तो उसे एक विश्व प्रसिद्ध व्यक्ति भी बना सकते हैं एवं चाहे तो एक आतंकवादी भी बना सकते हैं।” निष्कर्ष  : यहां से एक ही बात साफ होती है कि बचपन में बच्चे पूर्ण रूप से एक पवित्र आत्मा की तरह होता है यानी कि उनका मस्तिष्क एक पवित्र भूमि की तरह है जिसमें की मां-बाप अच्छे बीजों का बीजारोपण करते है एवं समय आने पर यही बीज संस्कारों के रूप में अंकुरित होते हैं।