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Importance of woman in society

 नमस्कार   🙏 मित्रो आज का   शीर्षक समाज के हित में है यदि समाज स्त्रियों का पूर्णता सम्मान करें तो समाज विकास पथ पर कभी भी डगमग आएगा नहीं। स्त्री के सम्मान में एक बात अवश्य कहीं जाती है: “नारी निंदा मत करो नारी नर कि खान है क्योंकि नारी से ही पैदा हुए भक्त ध्रुव, प्रहलाद,और भगवान है”   अर्थ  : नारी एक देवी का स्वरूप भी है जिसे सभी भक्त माता के रूप में भी पूजते है, नारी एक बहन का भी स्वरूप है जो कि अपने भाई की रक्षा हेतु रक्षा सूत्र बांधती है एवं समय आने पर एक माता का भाग भी निभाते है,नारी एक ग्रह लक्ष्मी का भी स्वरूप है जो कि घर को एक पवित्र धागे में बांधती है एवं इतना ही नहीं भगवान का दूसरा स्वरूप माता को कहा गया है यदि कोई पुत्र अपनी माता की सेवा ही पूर्ण भाव से करे तो भगवान सदैव उसकी रक्षा करेंगे। एवं संसार में स्त्री से बड़ी और कोई त्याग की मूरत नहीं है। “यहां पर एक ही परम सत्य की बात है नारी के स्वरूप में विद्या की देवी भी है इसलिए जो मनुष्य नारी का सम्मान नहीं करते उनकी बुद्धि भी धीरे धीरे कम होती चली जाती है” 🙏 सादर प्रणाम 🙏 
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how we see the god?

 नमस्कार 🙏 मित्रो आज का शीर्षक ही इस मस्तिष्क के रहस्ययो   की चाभी है क्योंकि जिसने भगवान का दर्शन किया उसने तो पूरा ब्रह्मांड ही देेख लिया। परंतुुुुुु यह इतना सरल भी नहीं है क्योकि भगवान दर्शन के लिए मन  वश में भी होना चाहिए और यह तभी संभव है जब मनुष्य सांसारिक माया से ऊपर उठकर भगवान को याद करे।   इसके लिए भी पूर्व में कबीर जी कहते है:   “यदि नदी किनारे बैठे हैं और आप चाहते हैं कि मोती प्राप्त हो जाए तो यह कहने से प्राप्त नहीं होगा मोती को प्राप्त करने के लिए डुबकी तो लगानी ही पड़ेगी।” अर्थ  : इसी प्रकार मनुष्य भी इस कलयुग में किनारे पर ही बैठा है वह सोचता तो है मोती को पाना है यानी कि भगवान को पाना है परंतु मोहमाया में लिप्त होकर वह इस नदी में यानी की ज्ञान के सागर में डुबकी नहीं लगा पाता। और जिसने मन को वश में रख डुबकी लगाई उसे ही भगवान का दर्शन हुआ है। 🙏सादर प्रणाम🙏

Imagination of kalyug in Mahabharata

नमस्कार  🙏 मित्रों आज का शीर्षक ही यही है कि आज सबका मन जैसा है उसकी परिकल्पना महाभारत में ही हो चुकी थी। महाभारत काल में जब विधुर जी बाहर से घूमकर आते है तो वह एक दृष्टांत  धृतराष्ट्र समेत सभी को सुनाते है। यह कुछ इस प्रकार से था कि   “ विधुर जी देखते है की एक हाथी का महावत अपने हाथी को मदिरा पीला देता है पहले तो उसका महावत ऊपर बैठा था जब हाथी ने शराब पी तो हाथी बेकाबू हो गया और यह भूल गया कि महावत उसका स्वामी है अब हाथी महावत को मारने के लिए दौड़ता है वह कहता है कि इस महावत ने मुझे इस डंडे से मारा मैं इसको समाप्त करूंगा और महावत भागते भागते एक कुएं के पास आ पहुंचा एवं उसने कुएं में छलांग लगा दी अब नीचे गिरते हुए एक जड़ को पकड़ लेता है परंतु अब नीचे एक भूखा मगरमच्छ बैठा है अब महावत क्या करता  ऊपर जाएं तो हाथी उसकी जान ले लेगा एवं नीचे गिरे तो मगरमच्छ खा जाएगा फिर भी वह सोचता है कि में बच गया सहसा उसकी नजर जड़ कि तरफ जाती है उसने देखा कि जड़ को दो चूहे काट रहे थे एक सफ़ेद और एक काला चुहा तथा ऊपर एक बड़ा वृक्ष था लगा हुआ जिसमें की एक मधुमक्खी का छत्ता लगा था जिसमें से शहद ट

Childhood brain

नमस्कार 🙏 मित्रो आज का शीर्षक यह है कि बचपन में मस्तिष्क किस प्रकार का होता है ? यह सवाल ही बड़ा रोचक है कि बचपन में बच्चे के मस्तिष्क कि परिकल्पना करना एक परमरहस्या की तरफ बढ़ने वाली बात है क्योंकि मानव जीवन के चार पहर है यह कुछ इस प्रकार है कि: पहला : बचपन  दूसरा : युवावस्था  तीसरा : जवानी  चोथा : वृद्ध  परंतु यहां पर बचपन कि चर्चा है बचपन में एक बच्चा का मस्तिष्क पूर्ण रूप से खाली होता है वह कुछ नहीं जानता। यहां पर एक ही परम रहस्य है जोकि पूर्व में एक विश्व प्रसिद्ध व्यक्ति ने कहा था की “बचपन में एक बच्चे का मस्तिष्क इतना प्रभावी होता है कि आप चाहे तो उसे एक विश्व प्रसिद्ध व्यक्ति भी बना सकते हैं एवं चाहे तो एक आतंकवादी भी बना सकते हैं।” निष्कर्ष  : यहां से एक ही बात साफ होती है कि बचपन में बच्चे पूर्ण रूप से एक पवित्र आत्मा की तरह होता है यानी कि उनका मस्तिष्क एक पवित्र भूमि की तरह है जिसमें की मां-बाप अच्छे बीजों का बीजारोपण करते है एवं समय आने पर यही बीज संस्कारों के रूप में अंकुरित होते हैं।

Body effect on brain

नमस्कार    🙏 मित्रो आज का शीर्षक भी बिल्कुल सरल है कि शरीर का मस्तिष्क पर क्या प्रभाव पड़ सकता है? वैसे शरीर एक प्रकार से जड़ तत्व है जिस प्रकार पेड़ धरती से जुड़ा हुआ होता है उसी प्रकार शरीर भी धरती से जुड़ा हुआ है एवं शरीर का अंत हो सकता है इसके भीतर की आत्मा का नहीं। शरीर भी विभिन्न प्रकार के है:   पहला : मनुष्य शरीर जो कि बड़े ही भाग से प्राप्त होता है क्योंकि इसी शरीर से ही भगवान को पाया जा सकता है। दूसरा : पशु एवं पक्षी का शरीर जो कि मनुष्य शरीर में पाप करने केेे कारण मिलता है। एवं इस शरीर से निकलने के बहुत जतन करने पड़ते हैं तथा अपने पुण्य को बनाना पड़ता है । निष्कर्ष:  यहां पर एक परम रहस्य की बात यही है कि जिसमें मनुष्य का शरीर प्राप्त कर अपने मन को पूर्ण वश में कर लिया तो समझो उसका मस्तिष्क पूर्ण रूप से कार्य करेगा। मन वश में तभी आएगा यदि आप सद मार्ग पर हैं।           🙏सादर प्रणाम🙏

Master's influence on the brain

नमस्कार  🙏 मित्रों आज का शीर्षक यह है कि गुरु का मस्तिष्क पर प्रभाव क्या पड़ता है? इस प्रश्न का कोई अंत ही नहीं है। क्योंकि गुरु की महिमाा शास्त्रों मे लिखे पद से ही पता चल जाती है।यह पद इस प्रकार है: गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः । गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥ अर्थात् :   इस पद के अर्थ में ही गुरु की महिमा विद्यमान है। गुरु ही ब्रह्मा है एवं वही विष्णु भी है और वही शंकर भी। एवं वही सर्वस्व है। ऐसे गुरु को शाश्वतप्रणाम है। एवं गुरु वही है जो आपको इस भवसागर से पार लगा सके। परंतु यहां पर भी दो बातें महत्वपूर्ण है। पहला की वह जो आपको गलत रास्ते पर चलना सिखाए वह कभी गुरु नहीं हो सकता। दूसरा  गुरु वही है जो आपको अच्छे मार्ग पर चलना सिखाए। जो की आपकी जीवन रूपी नाव को डगमग होने से बचाएं। ऐसे गुरु की आज्ञा मानना ही भगवान की आज्ञा के समान है। यह मस्तिष्क का परम रहस्य है कि गुरु के बिना मस्तिष्क कुछ भी नहीं।  🙏 सादर प्रणाम 🙏

Kalyuga's effect on the brain

नमस्कार 🙏मित्रों आज का शीर्षक ही बड़ा महत्वपूर्ण है यानी की कलयुग का मस्तिष्क पर प्रभाव    यह विषय जितना सोचा जाए उससे कई ज्यादा है क्योंकि इस योग में कलयुग के भी 4 स्थान है। पहला  :   सोने  मेंं दूसरा   : मदिरा में तीसरा   : झूठ में चौथा    : परस्त्रीगमन में इन चारों चीजों का प्रभाव आज हमारे सामने पूर्ण रूप से मस्तिष्क पर दिखाई पड़ता दिख रहा है। यदि गौर से देखा जाए तो इन चारों चीजों में अधर्म ही समाया हुआ है और हर अधर्म के मार्ग पर कलयुग विराजमान है। परंतु यहां पर एक बात बतानी महत्वपूर्ण है जो कलयुग का तीसरा स्थान है जिसमें कि “झूठ” प्रदर्शित हैं। अब झूठ के भी दो पहलू है: पहला   : वह व्यक्ति जोकि धर्म केे मार्ग पर है और किसी मजबूरी के कारण झूठ बोलता है एवं उसको अपने झूठ का का बौद्ध भी हैं। तो वह झूूूूूठा नहीं कहलाता। दूसरा : वह व्यक्ति जोकि अधर्म के मार्ग पर अग्रसर होकर किसी के नुकसान हेतु या अपने निहित स्वार्थ हेतु झूठ बोले फिर तो वह स्वयं यमराज से भी नहीं बच सकता। तथा इसी स्थान पर कलयुग की प्रभुता है। निष्कर्ष :  इसका हल ही यही है अपने मन को इन चार स्थानों से बचाएं और मन को स्थिर