नमस्कार
🙏 मित्रों आज का शीर्षक ही यही है कि आज सबका मन जैसा है उसकी परिकल्पना महाभारत में ही हो चुकी थी। महाभारत काल में जब विधुर जी बाहर से घूमकर आते है तो वह एक दृष्टांत धृतराष्ट्र समेत सभी को सुनाते है। यह कुछ इस प्रकार से था कि
“विधुर जी देखते है की एक हाथी का महावत अपने हाथी को मदिरा पीला देता है पहले तो उसका महावत ऊपर बैठा था जब हाथी ने शराब पी तो हाथी बेकाबू हो गया और यह भूल गया कि महावत उसका स्वामी है अब हाथी महावत को मारने के लिए दौड़ता है वह कहता है कि इस महावत ने मुझे इस डंडे से मारा मैं इसको समाप्त करूंगा और महावत भागते भागते एक कुएं के पास आ पहुंचा एवं उसने कुएं में छलांग लगा दी अब नीचे गिरते हुए एक जड़ को पकड़ लेता है परंतु अब नीचे एक भूखा मगरमच्छ बैठा है अब महावत क्या करता ऊपर जाएं तो हाथी उसकी जान ले लेगा एवं नीचे गिरे तो मगरमच्छ खा जाएगा फिर भी वह सोचता है कि में बच गया सहसा उसकी नजर जड़ कि तरफ जाती है उसने देखा कि जड़ को दो चूहे काट रहे थे एक सफ़ेद और एक काला चुहा तथा ऊपर एक बड़ा वृक्ष था लगा हुआ जिसमें की एक मधुमक्खी का छत्ता लगा था जिसमें से शहद टपक कर उस महावत के मुंह में गिरा एवं वह इस शहद का रसपान कर रहा ये सब सुनकर धृतराष्ट्र बोले अपने बड़ा ही भयानक दृश्य बताया ऐसा कोन सा अभागा होगा जो कि ऐसी दुविधा में फंसा होगा तो विधुर जी बोले कि महाराज यह हम सबकी दशा हो गई है।”
निष्कर्ष : इस पूरे वृतांत को सुनकर मन में यही सवाल उठता है कि ऐसा अभागा कौन है जो कि ऐसी दुविधा में फंस जाएं की एक तरफ खाई तो दूसरी तरफ कुआं। परंतु आखिर में विदुर जी कहते हैं कि यह हम सब की दशा है कि इस कलयुग में हमने अपने मन रूपी हाथी को माया की इतनी मदिरा पिला दी है कि यह माया में तन्मय हो गया है अब यह अपने स्वामी को मारने ही निकल पड़ा है एवं मनुष्य भागते भागते संसार रूपी कुएं में छलांग लगाता है एवं जड़ हाथ में आती है एक तरफ नीचे मौत है और दूसरी तरफ ऊपर मन है जो कि क्रोधित है एवं अब जड़ में जो दो चूहे लगे हैं एक सफ़ेद और एक काला। यहां पर जड़ का अर्थ है आयु जिसे काट रहे हैं दो चूहे एक सफेद चूहा जो कि दिन है और एक काला चूहा जो कि रात है ऐसे ही दिन के बाद रात एवं रात के बाद दिन हमारी आयु को काट रहे हैं। जब आयु की जड़ कट जाएगी तो मनुष्य इस संसार रूपी कुएं में नीचे गिर जाएगा।
“यहां पर एक ही परम रहस्य की बात है की इस कहानी के मध्य में जब महावत शहद का रसपान करता है ठीक उसी प्रकार यदि मनुष्य भगवान के प्रेम रस का रसपान करते हुए अपने मन को वश में रखें तो चाहे दिन हो या रात या दुख हो या सुख परे उठकर यानी की संसार में रहकर भी वह इसमें लिप्त नहीं हो पाएगा एवं वह इस युग को पार कर जाएगा। ”
🙏 सादर प्रणाम 🙏
Nicely written
जवाब देंहटाएंGreat!
जवाब देंहटाएंBeautiful one
जवाब देंहटाएंThank you soon much
हटाएंKeep up the great work
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